हमारे समाज में महिलाओं का विशेष स्थान है। जब हम प्राचीन भारतीय शास्त्रों को पढ़कर देखते हैं तब हम पाते हैं कि महिला को वैभवपूर्ण पद प्राप्त था। उसे शक्ति का प्रतीक माना जाता था, कोई भी धार्मिक संस्कार उसके बिना पूर्ण नहीं हो सकता था। माता सीता, सावित्री, पार्वती, भारतीय समाज की भूमिका प्रारूप थी लेकिन हमारे समाज में इस सम्मानित स्थिति को मनुस्मृति के काल में गहरा धक्का पहुंचा। मध्यकाल में महिलाओं का स्तर अधोगति को प्राप्त होने लगा पर्दा प्रथा प्रचलित हो गई सती प्रथा प्रमुख हो गई ब्रिटिश युग में राजा राममोहन राय ने इस मुद्दे को राज्य के समक्ष उठाया तब इसे कानूनी बल द्वारा रोका गया। धीरे-धीरे वह आत्मविश्वास युक्ति बनी स्वतंत्रता हेतु संघर्ष में अरुणा आसिफ अली, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी ,सुचेता कृपलानी तथा अन्य महिलाओं ने सहभागिता की तथा अपने पुरुष साथियों के साथ सहयोग कर समस्त प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष किया । कोई भी व्यक्ति इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, एम एस सुब्बुलक्ष्मी, किरण बेदी मदर टेरेसा, मेधा पाटेकर,
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