हमारे समाज में महिलाओं का विशेष स्थान है। जब हम प्राचीन भारतीय शास्त्रों को पढ़कर देखते हैं तब हम पाते हैं कि महिला को वैभवपूर्ण पद प्राप्त था। उसे शक्ति का प्रतीक माना जाता था, कोई भी धार्मिक संस्कार उसके बिना पूर्ण नहीं हो सकता था।
माता सीता, सावित्री, पार्वती, भारतीय समाज की भूमिका प्रारूप थी लेकिन हमारे समाज में इस सम्मानित स्थिति को मनुस्मृति के काल में गहरा धक्का पहुंचा।
मध्यकाल में महिलाओं का स्तर अधोगति को प्राप्त होने लगा पर्दा प्रथा प्रचलित हो गई सती प्रथा प्रमुख हो गई ब्रिटिश युग में राजा राममोहन राय ने इस मुद्दे को राज्य के समक्ष उठाया तब इसे कानूनी बल द्वारा रोका गया।
धीरे-धीरे वह आत्मविश्वास युक्ति बनी स्वतंत्रता हेतु संघर्ष में अरुणा आसिफ अली, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी ,सुचेता कृपलानी तथा अन्य महिलाओं ने सहभागिता की तथा अपने पुरुष साथियों के साथ सहयोग कर समस्त प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष किया । कोई भी व्यक्ति इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, एम एस सुब्बुलक्ष्मी, किरण बेदी मदर टेरेसा, मेधा पाटेकर, अरुंधति रॉय, कल्पना चावला तथा नजमा हेपतुल्ला को विस्मृत नहीं कर सकता भारत की इन महिलाओं ने राजनीति, प्रशासन, खेलकूद, कला, संपादन, अंतरिक्ष व विज्ञान में हमारे लिए गौरवपूर्ण कार्य किए हैं तथा आज-कल हो रही विभिन्न परीक्षाओं चाहे वह बोर्ड की परीक्षाएं हो या प्रतियोगितात्मक परीक्षाएं लड़कियां लड़कों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं।
वर्तमान समय में महिलाएं गृह कार्य, राजनीति,अर्थव्यवस्था, समाज व राष्ट्र निर्माण में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। उनमें आधारभूत परिवर्तन आ गया है। पर्दे में रहने वाली महिला का स्थान आधुनिक पहनावे, साहसी और फैशन के प्रति जागरूक फुर्तीली लड़कियों ने ले लिया है। स्त्रियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। तथा विभिन्न क्षेत्रों जैसे विज्ञान, अंतरिक्ष, खोज, इंजीनियरिंग, चिकित्सा व व्यापार में प्रतियोगिता कर रही हैं । उन्होंने स्वयं को जीवन के समस्त क्षेत्रों में अधिक परिश्रमी व लगन युक्त सिद्ध कर दिया है। वह अपने पुरुष साथियों के अपेक्षा अधिक उत्पादक हैं और बेहतर परिणाम देती हैं।
लेकिन भारत में महिलाओं को अभी भी दितीय स्तर का नागरिक माना जाता है। महिलाओं को यातना देने, बलात्कार, दहेज ह्त्या,की घटनाएं अभी भी सुनी जाती हैं। जनगणना से यह स्पष्ट है कि वह भारतीय जनसंख्या का 48 प्रतिशत हैं लेकिन वे इस देश में सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख स्थान नहीं पा रही हैं।
इसके लिए उत्तरदाई प्रमुख कुछ कारण है जैसे
- पुरुष प्रधान समाज
- धार्मिक व सामाजिक विश्वास तथा
- महिलाओं की शिक्षा व पिछड़ापन
- दहेज
- मातृत्व काल में लिंग परीक्षण
- बालिका के विरुद्ध पूर्वाग्रह
- महिलाओं को पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार नहीं देना
- बाल विवाह
यदि महिला ग्रहणी है तब उसका सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र सीमित होता है उसकी कोई आवाज नहीं होती यदि वह कार्यालय में कार्यरत है तब उसे अपने पुरुष साथियों के द्रोही तथा कभी-कभी विलासी कदमों का सामना करना पड़ता है। वह दूर की यात्रा नहीं कर सकती, पुरुषों के समान स्वेच्छापूर्वक मित्र नहीं बना सकती तथा प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों की अपेक्षा क्षीण मानी जाती ।
इन सभी समस्याओं के समाधान की तुरंत ही आवश्यकता है, कुछ सुझाव इस प्रकार हैं
- पुरुष अहम को महिला पहचान के अनुकूल बनाना होगा उसको अपनी पत्नी को सम्मान देना होगा चाहे वह ग्रहणी ही क्यों न हो यदि वह काम काजी महिला है तब उसके साथ ग्रह कार्यों में हाथ बटाना वह उसे मित्र के रूप में माना कि केवल धन अर्जित करने वाले यंत्र के रूप में ।
- दूसरा इस प्रकार के कानूनों को पारित करें तथा उन्हें क्रियान्वित करें जिससे कानूनी प्रक्रिया द्वारा समाज में महिला की स्थिति को सम्मान स्तर पर लाया जा सके।
- इस दिशा में कुछ कदम सन 1985 में महिला तथा बाल विकास का एक प्रथक विभाग स्थापित किया गया छठी पंचवर्षीय योजना में महिलाओं तथा बाल विकास पर एक प्रथम अध्याय सम्मिलित किया गया।
- सरकार के नए प्रमुख कार्यक्रम जैसे महिलाओं के लिए प्रशिक्षण व रोजगार में सहायता महिला कोष महिला विकास निगम आदि को प्रारंभ किया ।
- सन 1994 में प्रसव पूर्व नैदानिक पर विधि पारित किया गया
यह कहा जा सकता है कि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति में उत्थान दिखाई पड़ रहा है। नगरीय महिलाएं जीवन की वास्तविकताओं के साथ पर्याप्त अद्यतन हो गई है तथापि ग्रामीण महिलाओं को अभी स्वतंत्रता उदारीकरण तथा ज्ञान के निकट संपर्क में आने की आवश्यकता है सरकार अपना यथाशक्ति प्रयास कर रही है महिलाओं को साक्षर बनना चाहिए क्योंकि शिक्षा उनके तथा उनके परिवारों के लिए लाभदायक है परिवार का ताना-बाना उनके चारों ओर बना हुआ है दूसरे शब्दों में वह परिवार का केंद्र है उन के उत्थान में परिवार का तथा परिवारों के उत्थान में देश का उत्थान निहित है। वास्तविक स्वरुप उसी समय स्पष्ट होगा जब वह शिक्षित होगी तथा इस पुरुष प्रधान समाज में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होगी उन्हें आत्मविश्वास जागृत करना होगा।
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