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व्यवस्थापिका Administrator

व्यवस्थापिका Administrator 

भारतीय संविधान में यह व्यवस्था दी गई है कि शासन जनता का, जनता के लिए होगा। जनता अपने मत द्वारा प्रतिनिधियों को चुनती है। ये जनता के चुने हुए प्रतिनिधि विधानमंडल और संसद में बैठकर कानून और नीति बनाते हैं। जनता के यह चुने हुए प्रतिनिधि लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषद की सामूहिक शक्ति के रूप में व्यवस्थापिका कहलाते हैं।
व्यवस्थापिका जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का वह समूह है जो देश के लिए कानून बनाता है।व्यवस्थापिका केंद्र और राज्य स्तर पर अलग अलग होती है। केंद्र में कानून बनाने का कार्य संसद और राज्य में उस राज्य का विधान मंडल करता है। संसद के दो सदन होते हैं। निम्न सदन को लोकसभा और उच्च सदन को राज्यसभा कहा जाता है। भारत का राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है।

लोकसभा का गठन 

लोकसभा का गठन प्रत्यक्ष रूप से भारत के नागरिकों द्वारा किया जाता है। भारत के प्रत्येक 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के नागरिक को लोकसभा के सदस्यों के चुनाव में मतदान का अधिकार है। यह संसद का निम्न सदन है। संविधान के अनुसार इस सदन की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है ।

योग्यताएं 

लोकसभा सदस्य बनने के लिए  निम्न योग्यताएं आवश्यक हैं--
  •  वह भारत का नागरिक हो। 
  • वह 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो। 
  • वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर कार्य नहीं कर रहा हो। 
  • वह किसी न्यायालय द्वारा दिवालिया या पागल घोषित न किया गया हो।
  •  उसका नाम मतदाता सूची में होना चाहिए।

 कार्यकाल 

लोकसभा के सदस्यों का चुनाव 5 वर्ष के लिए होता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद की सलाह पर इसे 5 वर्ष से पहले भी भंग कर सकता है।

 लोकसभा अध्यक्ष 

लोकसभा के सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष चुनते हैं। अध्यक्ष लोक सभा की बैठक में सदन की अध्यक्षता करता है और सदन का संचालन करता है। उसकी अनुपस्थिति में यह कार्य उपाध्यक्ष करता है।

राज्यसभा का गठन 

यह संसद का उच्च सदन है। इसमें सदस्यों की संख्या अधिकतम 250 हो सकती है। इसमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। ऐसे व्यक्ति होते हैं जो कला, साहित्य, समाज सेवा, विज्ञान आदि के क्षेत्र में विशेष ज्ञान और अनुभव रखते हैं। राज्यसभा के 238 सदस्यों का चुनाव राज्यों की विधानसभाओं की निर्वाचित सदस्यों के द्वारा किया जाता है। इनका चुनाव जनता नहीं करती है। जनता के प्रतिनिधि इन्हें चुनते हैं। राज्यसभा के सदस्य इसी रूप में राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

योग्यताएं-- 

  • वह भारत का नागरिक हो। 
  • वह 30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो। 
  • अन्य योग्यताएं वही है जो लोकसभा सदस्यों के लिए निर्धारित हैं।

 कार्यकाल 

राज्यसभा स्थाई सदन है। इसके प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है इस सदन के एक तिहाई सदस्य प्रति 2 वर्ष के पश्चात अपना स्थान छोड़ देते हैं। इनका स्थान एक तिहाई नए सदस्य ग्रहण कर लेते हैं। राज्यसभा का अध्यक्ष भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। निर्वाचित सदस्य अपने में से किसी एक सदस्य को उपसभापति सुनते हैं

संसद के कार्य एवं अधिकार 

संसद के दोनों सदन लोकसभा एवं राज्यसभा के गठन के बाद हम संसद के प्रमुख कार्य एवं शक्तियों का अध्ययन निम्न बिंदुओं के आधार पर कर सकते हैं--

कानून निर्माण संबंधी अधिकार 

संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है देश के लिए कानून बनाना। संसद संघ सूची एवं समवर्ती सूची के समस्त विषयों पर कानून बना सकती है। विशेष परिस्थिति में वह राज्य सूची के किसी विषय पर भी कानून बनाने का अधिकार रखती है।

कार्यपालिका पर नियंत्रण 

संसद केंद्रीय कार्यपालिका के कार्यों पर नियंत्रण रखती है। प्रधानमंत्री व मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदाई होते हैं। लोकसभा के विश्वास तक ही मंत्री परिषद अस्तित्व में रहती है। लोकसभा प्रश्न पूछकर एवं अन्य नीतियों से मंत्री परिषद पर नियंत्रण रखती है। वह अविश्वास का प्रस्ताव पास कर उसे पद से हटा भी सकती है।

वित्त संबंधी 

संसद ही देश के आय और व्यय का विवरण अर्थात बजट पारित करती है। संसद की स्वीकृति के बिना न तो कोई नया कर लगाया जा सकता है और न ही किसी योजना पर व्यय किया जा सकता है। वित्त के संबंध में लोकसभा को राज्यसभा से अधिक अधिकार प्राप्त हैं। वित्त विधेयक को केवल लोकसभा में राष्ट्रपति की अनुमति से प्रस्तुत किया जाता है। लोकसभा में इस विधेयक के पारित हो जाने पर इसे राज्यसभा में भेजा जाता है। जो 14 दिन की अवधि में पारित करके लौटा देती है। अन्यथा यह पारित मान लिया जाता है।

 संविधान संशोधन संबंधी 

संविधान संशोधन की प्रक्रिया में लोकसभा और राज्यसभा के अधिकार समान हैं। संविधान संशोधन का विधेयक दोनों में से किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। दोनों सदनों के दो तिहाई बहुमत से संशोधन प्रस्ताव पारित होने पर संविधान की कुछ धाराओं में संशोधन संभव होता है। अन्य कुछ धाराओं में आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं की स्वीकृति आवश्यक है। कुछ धाराओं में संसद साधारण बहुमत से भी संशोधन कर सकती है।

निर्वाचन संबंधी 

संसद के दोनों सदनों के सदस्य राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं।

अन्य अधिकार 

राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं अन्य पदाधिकारियों को संविधान के अनुसार कार्य नहीं करने पर संसद उन्हें महाभियोग द्वारा पद से हटा सकती है।

राज्य विधान मंडल-- 

केंद्र में कानून निर्माण का कार्य संसद करती है। संसद की भांति ही राज्यों में भी विधानमंडल की व्यवस्था है जो राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाता है। विधानमंडल में दो सदन होते हैं। प्रथम सदन को विधानसभा तथा द्वितीय सदन को विधान परिषद कहा जाता है। भारत में केवल 5 राज्यों जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश ,कर्नाटक, बिहार में ही विधानमंडल दो सदन वाले हैं। अन्य सभी राज्यों में विधान मंडल में एक ही सदन विधानसभा है ।राज्यपाल विधान मंडल का अभिन्न अंग है।

विधानसभा का गठन--

 इस सदन की सदस्य संख्या राज्य की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित होती है। राज्यों की विधानसभा में कम से कम 60 सदस्य एवं अधिकतम 500 सदस्य तक हो सकते हैं। उन्हें विधानसभा सदस्य या विधायक कहा जाता है। इन सदस्यों का चुनाव राज्य की जनता व्यस्क मताधिकार के आधार पर, प्रत्यक्ष रूप से गुप्त मतदान द्वारा करती है।

 योग्यताएं 

विधानसभा सदस्य के लिए उन्हीं योग्यताओं का होना आवश्यक है जो लोकसभा सदस्यों के लिए निर्धारित की गई हैं।

कार्यकाल

 सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। किंतु राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं मंत्रिपरिषद की सलाह पर 5 वर्ष से पूर्व भी भंग कर सकता है।

विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष

 इनका चुनाव भी लोकसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की भांति ही विधानसभा में होता है। अध्यक्ष विधान सभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष कार्य करता है।

विधान परिषद का गठन 

विधान परिषद केंद्र की राज्य सभा के समान है। विधान परिषद के एक तिहाई सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभा सदस्यों द्वारा होता है दूसरे एक तिहाई सदस्य राज्य की स्थानीय संस्थाओं जैसे म्यूनिसिपल कमेटियों, जिला परिषदों, विश्वविद्यालय के स्नातकों और कुछ शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र द्वारा चुने जाते है। शेष सदस्य राज्य के राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं। विधान परिषद के सदस्यों की योग्यता कार्यकाल केंद्र की राज्यसभा के समान ही है

विधानमंडल के कार्य 

  1. कानून निर्माण संबंधी- विधान मंडल को राज्यसूची एवं समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। 
  2. वित्त संबंधी --  विधानसभा राज्य के वार्षिक आय व्यय का बजट राज्यपाल की अनुमति से प्रस्तुत करती है।  राज्य के वित्त पर इसका नियंत्रण होता है।
  3. कार्यपालिका संबंधी --  राज्य का मंत्री परिषद अपने कार्यों के लिए विधानसभा के प्रति उत्तरदाई होता है। अतः मंत्री परिषद पर विधानसभा का पूर्ण नियंत्रण होता है।
  4. संविधान संशोधन संबंधी-- संविधान की कुछ धाराओं में संशोधन करने के लिए संसद के साथ विधान मंडलों की सहमति आवश्यक है। 
  5. चुनावी संबंधी-- विधानसभा के सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं इस प्रकार राज्य के विधान मंडलों का कार्यक्षेत्र बहुत कुछ संसद के समान ही है।

कानून निर्माण की प्रक्रिया 

विधेयक कानून कैसे बनता है? इसकी प्रक्रिया संक्षेप में इस प्रकार है-- कानून बनाने के लिए जो प्रस्ताव रखा जाता है उसे विधेयक या बिल कहते हैं। विधेयक संसद के किसी भी सदन में किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकताहै। हमारी संसद और विधानमंडल में दो प्रकार के विधेयक प्रस्तुत किए जाते हैं--
 साधारण विधेयक  और  वित्त विधेयक 
  1. साधारण विधेयक-- यह प्रशासन एवं जनहित से संबंधित होता है। यह संसद के किसी भी सदन में किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
  2.  वित्त विधेयक - यह धन संबंधी होता है और विधानसभा में किसी मंत्री द्वारा ही प्रस्तुत किया जाता है । इन विधेयकों को पारित करने के लिए निम्न विधि अपनाई जाती है-

 प्रथम वाचन 

लोकसभा/ विधानसभा सदस्य अध्यक्ष से विधेयक प्रस्तुत करने की अनुमति मांगता है। अध्यक्ष की अनुमति से ही विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। सदन के प्रत्येक सदस्य को विजय की एक-एक प्रति देकर उसका शीर्षक सभा के सामने पढ़कर सुनाया जाता है। इसके पश्चात यह सरकारी गजट में छाप दिया जाता है।यह विधेयक  का प्रथम वाचन माना जाता है।

 द्वितीय वाचन

इस स्तर पर विधेयक की प्रत्येक धारा पर संसद या विधान मंडल में विचार-विमर्श होता है। कुछ सदस्य संशोधन भी प्रस्तुत करते हैं। विधेयक की कुछ धाराएं अपने वास्तविक रूप में और कुछ संशोधित रूप में पास हो जाती हैं। यह कार्यवाही दूसरा वचन कहलाती है।

 तृतीय वचन

इसमें सदस्य विधेयक की समस्त धाराओं पर  विचार करते हैं तथा पूर्ण विधेयक पर मतदान होता है।  यदि सदस्यों का बहुमत पक्ष में होता है तो विधेयक पारित कर दिया जाता है।  तब उसे द्वितीय सदन में भेज दिया जाता है।  दूसरे सदन में भी वह उन्हीं तीन अवस्थाओं से गुजरता है। यदि विधेयक को दोनों सदन पास कर देते हैं तो राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। यदि सहमति नहीं होती है तो दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाती है और बहुमत से निर्णय होता है। 

राष्ट्रपति या राज्यपाल की स्वीकृति --

अब विधेयक राष्ट्रपति या राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। यदि राष्ट्रपति, राज्यपाल इस पर हस्ताक्षर कर देते हैं तो वह कानून अथवा अधिनियम एक्ट जाता है। यदि आवश्यक समझते हैं तो विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिए संसद या विधान मंडल के पास भेज सकते हैं। यदि संसद या विधान मंडल उसे फिर पारित कर देती है तो राष्ट्रपति, राज्यपाल को स्वीकृति देनी ही पड़ती है। 

वित्त विधेयक

केंद्रीय वित्त मंत्री या राज्य का वित्त मंत्री लोकसभा में या विधानसभा में वित्त विधेयक प्रस्तुत करता है। जब लोकसभा उसे पारित कर देती है तब वह राज्यसभा में भेजा जाता है। राज्यसभा इस पर विचार करके पारित कर देती है।  यदि सहमत न हो तो वह 14 दिन में अपने संशोधनों के साथ लोकसभा से स्वीकार करने की प्रार्थना करती है। लोकसभा संशोधनों को स्वीकार अथवा अस्वीकार भी कर सकती है। यदि राज्यसभा किसी वित्त विधेयक को 14 दिन के अंदर नहीं लौटाती है तब भी वह विधेयक पास हुआ माना जाता है। राष्ट्रपति भी उस पर अपनी स्वीकृति दे देता है। राज्यों में वित्त विधेयक विधानसभाओं द्वारा पास किया जाता है। भारत में जिन राज्यों में दो सदन हैं, राज्यसभा की भांति विधान परिषद भी वित्त विधेयक 14 दिन रोक सकती है। राज्यपाल को अपनी स्वीकृति देनी होती है और वह कानून बन जाता है। 

अध्यादेश 

जब संसद या विधान मंडल का अधिवेशन नहीं चल रहा हो और देश को किसी कानून की अति आवश्यकता हो तो राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है। इस तरह जारी अध्यादेश कानून की तरह होते हैं जैसे संसद अथवा विधान मंडल द्वारा पास कानून मान्य है। यह अध्यादेश छह माह तक प्रभावी होते हैं। संसद का अधिवेशन शुरू होते ही अध्यादेश को पारित करना आवश्यक होता है।
अत: लोकतांत्रिक सरकार में जनता का मत महत्वपूर्ण होता है। मंत्रिपरिषद और संसद जनता के प्रति जिम्मेदार है। जनता इन्हें चुनती है इसलिए जनता इन पर लोकहित में काम करने के लिए दबाव डाल सकती है। यदि व्यक्ति सरकार के किसी काम को अच्छा नहीं समझते हैं तो सभाओं,अखबारों, रेडियो, दूरदर्शन या पत्रिकाओं के माध्यम से चर्चा कर सकते हैं। ऐसी चर्चाओं का सरकार की नीतियों पर असर पड़ता है सरकार काफी सोच विचार करके ही निर्णय लेती है।

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