संविधान CONSTITUTION
विश्व में प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना संविधान होता है जो कि एक कानूनी आलेख होता है जिसके अनुसार किसी देश की सरकार कार्य करती है। यानी संविधान एक ऐसा आधारभूत कानून है जिसके आधार पर किसी देश के नियम बनाए जाते हैं। यह सरकार के मुख्य अंग विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की व्यवस्था करता है। संविधान प्रत्येक अंग के अधिकारों को परिभाषित ही नहीं करता है अपितु उसके उत्तरदायित्व भी सुनिश्चित करता है। संविधान में सरकार की शक्तियां स्पष्ट रूप से परिभाषित रहती हैं। सरकार तथा नागरिकों की गतिविधियों की सीमाएं किस प्रकार निर्धारित की जाए यह संविधान द्वारा सुनिश्चित किया जाता है।
भारत का संविधान Constitution of India
संविधान को तैयार करते वक्त बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी समेत अन्य का यह मानना था कि भारत का संविधान भारतीयों की इच्छा अनुसार होना चाहिए। कांग्रेस ने 1924 में संविधान सभा के विचार का प्रतिपादन किया और प्रत्येक आगामी अधिवेशन में संविधान निर्माण हेतु संविधान निर्मात्री सभा के गठन की बात कही। अगस्त 1940 में ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार किया कि भारत का संविधान भारतीयों द्वारा ही बनाया जाएगा।
संविधान निर्मात्री सभा का गठन
जुलाई 1945 में ब्रिटेन में नई सरकार सत्ता में आई उसकी भारत नीति के अनुसार ब्रिटेन के सम्राट ने संविधान निर्मात्री सभा बनाने की घोषणा की। ब्रिटिश सरकार ने भारत की स्वतंत्रता के प्रश्न का समाधान ढूंढने के लिए 3 कैबिनेट मंत्रियों का एक दल भारत भेजा यह दल कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है। इसमें स्टेफोर्ड क्रिप्स,पेथिक लॉरेंस तथा एलेग्जेंडर सदस्य थे। कैबिनेट मिशन के प्रावधानों के अनुसार जुलाई 1946 में संविधान निर्मात्री सभा के लिए चुनाव हुए। भारतीय प्रांतों के लिए नियत की गई 296 सीटों के निर्वाचन का काम पूरा कर लिया गया। कांग्रेस को संविधान सभा में भारी बहुमत मिला। कांग्रेस को मिले भारी बहुमत के कारण मुस्लिम लीग ने संविधान सभा की कार्यवाही में भाग लेने से इंकार कर दिया। मुस्लिम लीग के असहयोग के बावजूद कांग्रेस द्वारा संविधान सभा के गठन के बाद संविधान निर्माण की कार्यवाही आरंभ कर दी गई। इस सभा के प्रमुख सदस्य थे- जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, के एम मुंशी, प्रोफेसर के टी शाह, डॉ बी आर अंबेडकर, गोविंद बल्लभ पंत, डॉ राधाकृष्णन, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सरदार बलदेव सिंह आदि और सरोजिनी नायडू तथा विजय लक्ष्मी पंडित प्रमुख महिला सदस्य थी। डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष चुने गए। संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए एक प्रारूप समिति का गठन किया गया था। इस प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ बी आर अंबेडकर थे। संविधान सभा की 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन के अंतराल में 166 बैठकें हुई। 26 नवंबर 1949 को संविधान अंगीकृत किया गया। सभा के सदस्यों ने उसके प्रत्येक अनुच्छेद पर गहरा विचार विमर्श किया। संविधान में ब्रिटेन, आयरलैंड, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की कुछ विशेषताओं का समावेश किया गया। संविधान निर्मात्री सभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं चुनी गई थी लेकिन इसके अधिवेशन प्रेस तथा जनता के लिए खुले थे। समाचार पत्रों में जनता का दृष्टिकोण तथा उनका परामर्श प्रकाशित करने की स्वतंत्रता थी। इस प्रकार संविधान में भारत वासियों के विचारों एवं उनके अभिमतों का भी समावेश किया गया है। 26 जनवरी 1950 से स्वतंत्र भारत का संविधान लागू कर दिया गया।
संविधान की प्रस्तावना
प्रस्तावना संविधान के दर्पण के रूप में कार्य करती है। यह पूर्ण संविधान का सार व प्रत्येक अनुच्छेद का आधार है। 1976 के 42 वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, पंथ निरपेक्ष व अखंडता शब्द भी जोड़े गए हैं।यह इस प्रकार हैं-“हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाला बंधुत्व बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मा अर्पित करते हैं।"संविधान सभा की प्रस्तावना में भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया है। इसका तात्पर्य है कि 26 जनवरी 1950 से भारत की राज्य की स्थिति समाप्त हो गई है और भारत अन्य राज्यों की तरह एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य हो गया है।संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणराज्य संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणराज्य से अभिप्राय है-
भारत के आंतरिक मामलों एवं विदेशी संबंधों के निर्धारण में कोई बाहरी शक्ति प्रभावित नहीं कर सकती। अंतरराष्ट्रीय मामलों में हम अपनी इच्छा अनुसार नीति निर्धारण हेतु स्वतंत्र हैं।
लोकतंत्र
लोकतंत्र से अभिप्राय है जनता का शासन। भारत में व्यस्त मताधिकार के आधार पर प्रतिनिधि लोकतंत्र की स्थापना हुई है। नागरिक प्रत्येक 5 वर्ष बाद अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करते हैं जो लोकसभा एवं विधानसभा के माध्यम से उनके प्रति उत्तरदाई होते हैं। सरकार अंतिम रूप से जनता के प्रति उत्तरदाई होती है। जनता द्वारा निर्वाचित प्रत्येक प्रतिनिधि संसद एवं विधानसभा में अपने क्षेत्र के मतदाताओं की भावनाओं व विचारों को अभिव्यक्त करता है।
गणराज्य
गणराज्य से अभिप्राय है भारत का राज्याध्यक्ष अर्थात राष्ट्रपति का पद वंशानुगत ना होकर निर्वाचित होगा। अप्रत्यक्ष रूप से 5 वर्ष की अवधि के लिए राष्ट्रपति का निर्वाचन होता है। लोकतंत्र आंग्ल भाषा के शब्द डेमोक्रेसी का हिंदी रूपांतरण है जिसका अर्थ है जनता का शासन। विभिन्न विद्वानों ने इसकी भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैइब्राहिम लिंकन के अनुसार “लोकतंत्र जनता का जनता के लिए जनता द्वारा शासन होता है।“ डाएसी के अनुसार “लोकतंत्र शासन का वह प्रकार है जिसमें शासक समुदाय का संपूर्ण राष्ट्र की अपेक्षाकृत एक बड़ा भाग रहता है।“
पंथ निरपेक्षता
भारत जैसे विशाल विविधता वाले राष्ट्र में उपासना की अनेक पद्धतियां हैं। राज्य द्वारा किसी एक उपासना पद्धति को प्रोत्साहन नहीं दिया जाता। उपासना पद्धति के विषय में नागरिक स्वतंत्र हैं। नागरिक अपनी आस्था के अनुसार धार्मिक शिक्षा के प्रसार प्रचार करने के मामले में भी स्वतंत्र हैं। लेकिन प्रलोभन एवं भय दिखाकर किसी भी आस्था को परिवर्तित नहीं किया जा सकता। भारत का कोई पंथ या धर्म नहीं होगा सरकार ऐसी कोई नीति नहीं बना सकती जो भारत में रहने वाले व्यक्तियों में संप्रदाय के आधार पर भेदभाव करती हो।
राष्ट्रीय एकता व अखंडता
राष्ट्रीय एकता को बनाने रखने के लिए प्रस्तावना में अखंडता शब्द को 42 वें संविधान संशोधन द्वारा शामिल किया गया है। इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय एकता व राष्ट्रीय विरोधी विघटनकारी प्रवृत्तियों पर रोक लगाकर राष्ट्र की एकता व अखंडता को सुनिश्चित करना है।
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं
भारतीय संविधान चिंतन विचार विमर्श के उपरांत निर्मित हुआ है। इसमें ब्रिटेन संयुक्त राज्य अमेरिका तथा आयरलैंड के संविधान से भी कुछ विशेषताएं ग्रहण की गई है इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. संप्रभुता भारतीय जनता में निहित-
देश की संप्रभुता भारतीय जनता में निहित है। भारतीय संविधान भारतीय जनता द्वारा भारत की जनता के लिए बनाकर भारतीय जनता को ही समर्पित किया गया है। इस प्रकार संविधान द्वारा सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित की गई है।
2. विश्व का सबसे बड़ा संविधान-
मूल भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद व अनुसूचियां थी। बाद में 4 अनुसूचियां और जोड़ दी गई। इस प्रकार भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है। संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में 7 अनुच्छेद, कनाडा के संविधान में 147 अनुच्छेद, ऑस्ट्रेलिया के संविधान में 128 अनुच्छेद हैं।
3. लिखित संविधान-
निर्मात्री सभा को भारतीय संविधान को तैयार करने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा। इस दृष्टि से भारतीय संविधान ब्रिटिश संविधान से भिन्न है क्योंकि वहां का संविधान ने तो लिखित है और न ही निर्मित है। वहां की शासन व्यवस्था परंपराओं व अभी समय के आधार पर संचालित होती है।
4. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य-
भारतीय सरकार आंतरिक मामलों में अपनी इच्छा अनुसार निर्णय करने में स्वतंत्र है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में भी सरकार राष्ट्रीय हित के आधार पर इच्छा अनुसार निर्णय कर सकती है।
5. समाजवादी राज्य-
1976 में संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी शब्द जोड़ा गया। राष्ट्र में आर्थिक व सामाजिक समानता की स्थापना इसके पीछे मूल उद्देश्य है। भारत ऐसे समाज के निर्माण का प्रयास करेगा जिसमें व्यक्तियों के बीच आर्थिक समानता न हो।
6. पंथनिरपेक्ष राज्य-
धार्मिक विविधता के बावजूद भारत एक पंथनिरपेक्ष राज्य है। कानून की दृष्टि से सभी नागरिक समान है। सरकार ऐसी कोई नीति नहीं बना सकती जो भारत में रहने वाले व्यक्तियों में पंथ या संप्रदाय के आधार पर भेदभाव करती हो। अर्थात राज्य का अपना कोई पंथ नहीं है।
7. कठोर एवं लचीलापन का समन्वय-
जिस संविधान की संशोधन प्रक्रिया अत्यंत दुष्कर हो उसे कठोर संविधान तथा संविधान के संशोधन प्रक्रिया आसान हो उसे लचीला संविधान की संज्ञा दी जाती है। भारतीय संविधान दोनों का मिश्रण है। संविधान संशोधन संसद साधारण कानून की तरह कर सकती है। कुछ अनुच्छेद ऐसे हैं जिनमें संसद के दो तिहाई बहुमत से संशोधन किया जा सकता है परंतु संघ से संबंधित अनुच्छेदों के लिए यह आवश्यक है कि पहले उन्हें संसद दो तिहाई बहुमत से पारित करें और उसके पश्चात आधे से अधिक विधानमंडल उस प्रस्ताव की पुष्टि करें। इस प्रकार भारतीय संविधान में कठोरता का अदभूत मिश्रण है।
8. संसदात्मक प्रणाली-
भारत में संसदात्मक शासन प्रणाली स्वीकार की गई है। इस प्रणाली में संसद सर्वोच्च होती है और जनता का प्रतिनिधित्व करती है। केंद्र की विधायिका को संसद कहा जाता है। संसद के दो सदन होते हैं राज्यसभा व लोकसभा। केंद्र का शासन राष्ट्रपति व राज्यों का शासन राज्यपाल के नाम पर संचालित किया जाता है परंतु वास्तविक प्रशासन मंत्री परिषद द्वारा संचालित किया जाता है जिसका प्रमुख के अंदर में प्रधानमंत्री वह राज्यों के मुख्यमंत्री होते हैं।
9. स्वतंत्र न्यायपालिका-
संविधान द्वारा स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना की गई है। संविधान में व्यवस्था की गई है कि केंद्र व राज्यों के बीच संवैधानिक विवाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णित किए जाएंगे। सर्वोच्च न्यायालय हमारी न्यायपालिका का शीर्ष न्यायालय है।
10. लोक कल्याणकारी राज्य-
हमारे संविधान में लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की बात कही गई है- कल्याणकारी राज्य से अर्थ एक ऐसे राज्य से है जिसमें राज्य के सारे कार्य जनता के कल्याण की दृष्टि से किए जाते हैं। ऐसे राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा कृषि जैसे विषयों को उतना ही महत्व दिया गया है जितना सुरक्षा तथा विदेश संबंधों को।
11. मौलिक अधिकार-
नागरिकों के सर्वांगीण विकास हेतु हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। यह मौलिक अधिकार है- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा व संस्कृति का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
12. मूल कर्तव्य-
1976 में 42 वें संशोधन द्वारा नागरिकों के 10 मूल कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं। जिनमें संविधान का पालन करना, भारत की संप्रभुता, एकता व अखंडता की रक्षा करना, समान भातृत्व भाव रखना, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना इत्यादि प्रमुख हैं। संविधान के 86 वें संशोधन द्वारा 11वां कर्तव्य और जोड़ा गया है।
13. संघात्मक व्यवस्था-
संघात्मक व्यवस्था में संघ सरकार तथा राज्यों की सरकारें होती हैं। संविधान ने केंद्र व राज्यों की सरकारों को की शक्तियों की सीमा रेखा विभिन्न विषयों की सूची बनाकर स्पष्ट कर दी है। इन सूचियों को संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची कहा जाता है। राष्ट्रीय महत्व के विषय जैसे रक्षा, विदेश संबंध, आणविक ऊर्जा, बैंकिंग, डाक, तार आदि संघ सूची में रखे गए हैं। इस सूची में रखे गए विषय पर केंद्र सरकार कानून बना सकती है। राज्य सूची में जिन विषयों का उल्लेख किया गया है उन पर राज्य सरकार कानून बना सकती है। पुलिस, स्थानीय स्वशासन, कृषि आदि राज्य सूची के विषय हैं। समवर्ती सूची के विषय पर केंद्र व राज्य दोनों सरकारी कानून बना सकती हैं लेकिन पारस्परिक विरोधाभासी होने की स्थिति में केंद्र सरकार का कानून ही मान्य होगा इन सूचियों से स्पष्ट होता है कि केंद्र सरकार के पास शक्तियां अधिक हैं।
14. इकहरी नागरिकता-
भारत में संघीय शासन प्रणाली के बावजूद इकहरी नागरिकता के सिद्धांत को स्वीकार किया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह दोहरी नागरिकता का प्रावधान नहीं है।
15. विश्व शांति का पोषक-
भारतीय संविधान विश्व की शांति का पोषक है। संविधान के नीति निर्देशक तत्व में कहा गया है कि राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की वृद्धि एवं राष्ट्रों के बीच न्याय तथा सम्मान पूर्ण संबंधों को बनाए रखने का प्रबंध करेगा। भारत के नेतृत्व में गुटनिरपेक्ष आंदोलन आंदोलन ने विश्व में शांति स्थापना का महत्वपूर्ण कार्य किया है।
16. व्यस्क मताधिकार-
व्यस्क मताधिकार का अर्थ होता है संविधान द्वारा निर्धारित निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद सभी नागरिकों को मताधिकार प्राप्त होना। मूल संविधान के अनुसार वयस्कता की आयु 21 वर्ष थी जिसे 61 वें संविधान संशोधन द्वारा 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया है। व्यस्क मताधिकार से संबंधित कुछ प्रमुख बातें निम्न हैं- a) भारत में मताधिकार का आधार धर्म, वर्ण, जाति, भाषा, लिंग अथवा जन्म स्थान नहीं है। आज भारत के लोग भारतीय नागरिक होने के नाते मतदान करते हैं।b) मताधिकार के लिए शिक्षा या संपत्ति संबंधी किसी योग्यता को स्वीकार नहीं किया गया है, c) पागल या दीवालिया व्यक्ति को मताधिकार प्राप्त नहीं है। इसके अतिरिक्त संविधान या समुचित विधान मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन अपराध, भ्रष्टाचार व अन्य अपराधों के आधार पर किसी व्यक्ति को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है।व्यस्क मताधिकार ने केवल नितांत ओचित्येपूर्ण है बल्कि इससे अल्पसंख्यकों के हित की सुरक्षा निश्चित होती है। इससे राजनीतिक जागरूकता तथा सार्वजनिक शिक्षा का भी विस्तार होता है। वर्तमान में सर्वत्र व्यस्क मताधिकार का प्रयोग इस बात का प्रमाण है कि यह लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है। हैरोल्ड लास्की ने ठीक ही कहा है कि “व्यस्क मताधिकार का कोई विकल्प नहीं है।“ व्यस्क मताधिकार नागरिकों का अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी है। उपरोक्त विशेषताओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि हमारे संविधान में आदर्श एवं व्यवहार का सुंदर समन्वय है। इस पर लेख पर हर भारतवासी को गर्व होना चाहिए।
17. राष्ट्रभाषा का प्रावधान-
भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। हालांकि 1965 के सहभाषा विधेयक के द्वारा अँग्रेजी को अनिश्चित काल तक जारी रखने का प्रावधान है।
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