भारतीय लोकतंत्र Indian Democracy
स्वाधीन भारत में लोकतंत्र के संसदीय स्वरूप को संविधान निर्माताओं द्वारा स्वीकृत किया गया। 26 जनवरी 1950 को भारत प्रभुता संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बना। लोकतंत्र आज की सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली मानी जाती है। भारत विश्व का विशालतम लोकतंत्र है। यह विशालतम इस रूप में है कि सरकार को निर्वाचित करने वाले भारतीय मतदाताओं की संख्या विश्व के अन्य किसी लोकतंत्र से सर्वाधिक है। जनता केंद्र व राज्य सरकारों के साथ स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के प्रतिनिधियों का भी निर्वाचन करती है। इसके लिए संविधान निर्मात्री सभा ने भारत वासियों के लिए सार्वभौम व्यस्क मताधिकार के सिद्धांत को स्वीकार किया। बहुत से देश स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोकतांत्रिक बने लेकिन आगे जाकर उन्होंने लोकतंत्र को छोड़ दिया और सैनिक शासन से शासित होने लगे। भारत उन नवोदित स्वतंत्र देशों में से है जहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो गई है।
लोकतंत्र का अर्थ
लोकतंत्र का संबंध जनता के शासन से है। लोकतंत्र का अंग्रेजी शब्द डेमोक्रेसी Democracy है जो ग्रीक शब्द डेमो और कृतियां से मिलकर बना है। जिसका अर्थ जनता तथा शक्ति होता है। अतः लोकतंत्र से तात्पर्य जनता की शक्ति से है। व्यापक अर्थ में लोकतंत्र को शासन सामाजिक व आर्थिक अर्थों के संदर्भ में भली-भांति समझा जा सकता है। शासन के रूप में लोकतंत्र वह शासन है जिसमें शासन जनता का जनता के लिए और जनता के द्वारा संचालित हो। सामाजिक रूप में लोकतंत्र का संबंध सामाजिक समानता से है। सब व्यक्ति जाति, रंग, लिंग, संपत्ति अथवा धर्म आधारित भेदभाव बिना समान अधिकार एवं अवसर का उपयोग करते हैं। आर्थिक रूप में लोकतंत्र का अर्थ आर्थिक समानता से लिया जाता है। जिसमें समाज के प्रत्येक सदस्य को अपने विकास के समान अवसर मिले। साथ ही लोगों के बीच आर्थिक विषमता अधिक न बढ़े और एक दूसरे का शोषण न हो। भारतीय लोकतंत्र उपयुक्त बातों का पोषक है। व्यस्क मताधिकार के द्वारा केंद्र, राज्य व स्थानीय संस्थाओं के प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जाते हैं। संविधान सुनिश्चित करता है कि भारत के लोग स्वतंत्र एवं समान हैं और उन्हें जाति, धर्म, रंग, लिंग अथवा जन्म स्थान का भेद किए बिना मतदान करने का अधिकार है।यह एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धांत पर आधारित है। इससे देश में राजनीतिक समानता सुनिश्चित होती है। संविधान में अयोग्यताओं का भी उल्लेख है। जो लोग दिवालिया या मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं है।
लोकतंत्र का प्रभावी रूप से कार्य करना नागरिकों की जरूरत की जागरूकता पर निर्भर है। सरकार संचालित करने वाले प्रतिनिधियों को चुनाव करने वाले मतदाताओं को सदैव जागरूक रहना चाहिए और उन्हें अपने अधिकार तथा कर्तव्य की जानकारी होनी चाहिए। साथ ही उन्हें अपने देश व विदेश की नवीनतम घटनाओं से अवगत रहना चाहिए। यह जरूरी है कि जनता अपनी जागरूकता बढ़ाने के लिए समाचार पत्रों, रेडियो, टेलीविजन, सार्वजनिक सभाओं तथा प्रचार प्रसार के इलेक्ट्रॉनिक साधनों का उपयोग करें। देश का यह दुर्भाग्य है कि 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते। लोग जागरूक न होने, आलस्य या उदासीनता व प्रत्याशी को न जानने या पसंद न करने के कारण मत नहीं देते। इसके अलावा कुछ अन्य कारण भी हैं जो नागरिकों को मतदान से विमुख करते हैं। नागरिकों का यह व्यवहार लोकतंत्र को कमजोर करता है। नागरिकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि निर्वाचन में मतदान करना अधिकार ही नहीं उनका कर्तव्य भी है।
आज भारतीय लोकतंत्र के सामने अनेक चुनौतियां हैं। जैसे धनबल, भुजबल का चुनाव में बढ़ता प्रचलन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, विदेशी घुसपैठ, क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका तथा राजनीति में मूल्य हीनता का बढ़ता प्रभाव। राजनीति में अपराधी तत्वों की भूमिका बढ़ रही है। चुनाव आयोग के प्रयास, न्यायपालिका की सक्रियता भी चुनाव सुधारों में भूमिका निभा रही है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए उसके समक्ष उपस्थित चुनौतियों का उचित समाधान निकाला जाना नितांत आवश्यक है। इस हेतु विधायिका को प्रभावी प्रयास करने की विशेष आवश्यकता है।
जनमत
राजनीतिक दृष्टि से आधुनिक युग लोकतंत्र का युग है। लोकतांत्रिक सरकार के लिए जनमत अपरिहार्य है। सरकारें चाहे किसी भी विचारधारा की हो अपनी शक्ति के लिए जनमत पर निर्भर होती हैं। साधारणतया जनता की राय को जनमत कहते हैं। विशेष रूप में जनमत सार्वजनिक मामलों पर जनता का वह मत है जो किसी समुदाय या वर्ग विशेष का न होकर जनसाधारण का हो, किसी क्षणिक आवेश अथवा घटना का परिणाम न होकर स्थाई हो और जिसमें जनकल्याण की भावना निहित हो। लोकतंत्र में किन्हीं ज्वलंत समस्याओं पर जनता का मत ज्ञात किया जाता है क्योंकि जनता ही लोकतंत्र में सत्ता का मूल आधार है। प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र में प्रत्येक सरकार को अपनी नीतियों के संबंध में समय-समय पर जनता की प्रतिक्रिया अथवा राय जानना आवश्यक होता है। कोई भी सरकार यह चाहेगी कि वह बार-बार सत्ता में आए। चुनाव में सफलता इस पर निर्भर करती है कि उस सरकार द्वारा सत्ता में रहते हुए किए गए विकास कार्यों के विषय में जनता की प्रतिक्रिया क्या है। सरकार को जनविरोधी नीतियों के कारण सत्ता से हाथ धोना पड़ता है। नियमित चुनावों के द्वारा जनता सरकारें बदल सकती है। किसी दल के सत्ता में आने सरकार बनाने तथा आगामी वर्षों में सत्ता में बने रहने के लिए शुद्ध जनमत की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जनमत ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देता है कि सरकार न तो कुशासन कर सकती है और न ही देश की उपेक्षा कर सकती है। जागरूक एवं प्रबुद्ध जनता यदि ठीक से तथ्यों से अवगत रहती है तो वह किसी भी सरकार से उपेक्षित नहीं रह सकती। सरकार यह भी जानती है कि आम जनता की भावनाओं की उपेक्षा करने से वह अलोकप्रिय हो जाएगी और आगामी चुनाव में वह सत्ता से हट जाएगी।
जनमत निर्माण के साधन-
जनमत का निर्माण कई साधनों से होता है कुछ प्रमुख साधन निम्नानुसार हैं-
प्रिंट मीडिया-
आजकल लोगों को देश विदेश की घटनाओं की जानकारी प्रमुख रूप से दो प्रकार के साधनों से होती है। प्रिंट मीडिया से तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से। प्रिंट मीडिया में समाचार पत्र- पत्रिकाएं आती हैं जिनमें देश और विदेश में घटित घटनाओं के समाचार छपते रहते हैं। वह घटनाओं के मामले में राजनेताओं व विशेषज्ञों के कथनों का उल्लेख करते हैं, विधान मंडलों, जन सभाओं तथा सम्मेलनों के निर्णय को प्रकाशित करते हैं। वे सरकार की आलोचना करते हुए महत्वपूर्ण सुझाव देते हैं। प्रिंट मीडिया सरकार और जनता के मध्य एक कड़ी का काम करता है और जनता की आवाज को सरकार तक और सरकार के निर्णय को जनता तक पहुंचाता है।
जनमत समाचार पत्रों पर निर्भर है। समाचार पत्रों में प्रकाशित सूचनाएं यदि सही ढंग से प्रस्तुत की जाती हैं तो वह सही प्रकार का जनमत निर्माण करने में सहायक होती हैं। एक ही घटना के विषय में भिन्न-भिन्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं किंतु महत्वपूर्ण बात यह है कि तथ्यों का सही-सही उल्लेख किया जाना, तथ्यों का सही विवरण दिया जाना समाचार पत्रों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर निर्भर है। कभी-कभी समाचार पत्र व्यक्ति निष्ठा तथा पूर्वाग्रह से प्रभावित होकर समाचार प्रकाशित करते हैं। कभी ऐसे अवसर भी आते हैं जब सरकार समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करती है। इससे समाचारों के स्वतंत्र व निष्पक्ष प्रसारण में बाधा पड़ती है। समाचार पत्रों के माध्यम से सरकार अपने कार्यों और उपलब्धियों का प्रचार करती है। ऐसी स्थिति में सरकार नहीं चाहती कि उसकी असफलताओं और अलोकप्रिय कार्यों की जानकारी साधारण जनता को मिले। ऐसी स्थिति में नागरिकों को सरकार की नीतियों और कार्यों के विषय में आंख और कान खुले रखने पड़ेंगे। उन्हें यह देखना होगा कि प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनी रहे और उन्हें संतुलित समाचार प्राप्त हो सके। समाचार पत्रों के अतिरिक्त पत्रिकाओं की भूमिका भी जनमत निर्माण में महत्वपूर्ण है। चाहे वे साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक अथवा क्षेत्रीय भाषाओं की पत्र-पत्रिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया-
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रेडियो, टेलीविजन आदिआते हैं। जनमत निर्माण में यह साधन भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। जागरूकता का जो कार्य पढ़े लिखे लोगों के लिए समाचार पत्र करते हैं वही कार्य आम लोगों के लिए रेडियो, टेलीविजन सिनेमा करते हैं। वस्तुतः समाचार पत्रों व पत्रिकाओं की अपेक्षा रेडियो की पहुंच अधिक घरों में है। रेडियो टीवी के द्वारा सूचनाएं तथा तत्कालीन राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं पर भाषण प्रसारित किए जाते हैं। आपने समाचार सुनने के लिए लोगों को पानी या चाय की दुकानों ग्राम छोटे नगरों के सामुदायिक केंद्रों पर भी लगाते देखा होगा । कभी कभी आपने यह भी देखा होगा कि लोग गांव की चौपाल में चुनाव का नतीजा सुनने के लिए एकत्रित हो जाते हैं। वे केवल नतीजे नहीं सुनते बल्कि प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं जो जनमत निर्माण में सहायक होता है ।
सिनेमा और टेलीविजन में सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक मामलों के साथ-साथ जातिवाद, दहेज प्रथा, गरीबी अथवा लिंगभेद आदि समस्याओं का भी चित्रण रहता है। जनता को इनकी जानकारी मिलती है और जनता यह भी जान लेती है कि इन समस्याओं को कैसे हल किया जा सकता है। हम जो कुछ भी सिनेमा, टेलीविजन सीरियल में देखते हैं वह हमारे मस्तिष्क पर एक छाप छोड़ जाता है। हमारे विचारों और कार्यों को प्रभावित करता है। परिणाम स्वरूप यह स्वस्थ अथवा हानिप्रद जनमत का निर्माण कर सकता है। इन साधनों के हानिप्रद प्रभाव को नियंत्रित करने तथा उन्हें रचनात्मक रूप से अधिक सार्थक बनाने के लिए उपाय करने होंगे। इसके अलावा स्वयंसेवी संगठन, राजनीतिक दल, विधानमंडल व मंचों की जनमत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
लोकतंत्र में सरकार और जनता दोनों को धैर्यवान तथा सहिष्णु होना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि वह जनमत को महत्व दे। जनता को चाहिए कि वह विचारों की विभिनता के प्रति सहनशील रहे और दूसरों के विचारों का सम्मान करें।तभी जनमत निर्माण के विभिन्न माध्यमों से विभिन्न वर्गों के विचारों की अभिव्यक्ति हो पाएगी। लोकतंत्र में कोई एक राजनीतिक दल सत्ता में नहीं रहता, अतः समस्त राजनीतिक दल जनमत का आदर करते हैं।
निर्वाचन
यह कहा जा सकता है कि निर्वाचन लोकतंत्र का मापक यंत्र है और राजनीतिक दल तथा प्रत्याशीगण निर्वाचन की जीवन डोर हैं। निर्वाचन जनता को अपने प्रतिनिधियों के कार्यों का मूल्यांकन करने का अवसर प्रदान करते हैं। निर्वाचन राजनीति की नई प्रवृत्तियों को जन्म देता है जिससे देश का भविष्य पथ निर्मित होता है। निर्वाचन के समय मतदाताओं को भी देश के सामाजिक, आर्थिक परिवेश का मूल्यांकन करने का अवसर मिलता है। इस प्रकार निर्वाचन एक ऐसा परिदृश्य प्रस्तुत करता है जहां मतदाताओं को स्वतंत्र, भय रहित तथा पारदर्शी ढंग से मतदान करने का अवसर प्राप्त होता है।
आम चुनाव
चुनाव जनता का समर्थन पाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के मध्य होने वाली एक प्रतियोगिता है। उम्मीदवार निर्दलीय होकर भी चुनाव लड़ सकते हैं। जो राजनीतिक दल बहुमत प्राप्त करता है वह सरकार बनाकर शासन चलाता है। परंतु कभी-कभी ऐसा भी होता है जब किसी एक दल को विधायिका में बहुमत नहीं मिलता है। ऐसी स्थिति में एक से अधिक दल मिलकर सरकार बनाते हैं। भारत में केंद्र व राज्य सरकारें बहुमत से गठित होती हैं पिछले कुछ वर्षों में गठबंधन सरकारें बनी है।
उपचुनाव और मध्यावधि चुनाव
भारत में लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों का चुनाव 5 वर्षों के लिए होता है। यह आवश्यक है कि यह चुनाव सदैव नियत समय पर हों और सामान्य परिस्थिति में ही संपन्न कराए जाएं। यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि की मृत्यु हो जाती है अथवा वह त्यागपत्र दे देता है तो उस निर्वाचन क्षेत्र में नए चुनाव होते हैं। इस प्रकार के चुनाव को उपचुनाव कहते हैं। जब लोकसभा अथवा राज्यों की विधानसभाओं को उनकी 5 वर्ष की अवधि पूरी होने के पहले ही बंद कर दिया जाता है तो उनके पुनर्गठन के लिए कराए जाने वाले निर्वाचन को मध्यावधि चुनाव कहते हैं।
निर्वाचन आयोग
हमारे देश में संसद, राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का निर्वाचन एक स्वतंत्र संगठन द्वारा संचालित, नियंत्रित और पर्यवेक्षित किया जाता है। उसे भारत के निर्वाचन आयोग के नाम से जाना जाता है। निर्वाचन आयोग में 1 मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा दो निर्वाचन आयुक्त होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति उनका कार्यकाल उनकी सेवा शर्तों तथा पद से हटाए जाने की प्रक्रिया आदि का प्रावधान संविधान में ही कर दिया गया है। इसका उद्देश्य निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र व निष्पक्ष कार्य करने की स्थिति प्रदान करना है। लोकसभा राज्यसभा के सदस्यों, राज्यों के विधान मंडलों, राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन का दायित्व निर्वाचन आयोग को सौंपा गया है। निर्वाचन आयोग विभिन्न चुनाव की तिथियां निश्चित करता है। निर्वाचन आयोग चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के लिए निर्धारित आचार संहिता की पालना भी सुनिश्चित करता है।
निर्वाचन संपादन की समस्याओं को निर्वाचन प्रक्रिया कहा जाता है। चुनाव गुप्त मतदान द्वारा होता है। निर्वाचन प्रक्रिया में चुनाव तिथियों की घोषणा, नामांकन पत्रों का भरा जाना, उनकी जांच, प्रत्याशी के नामों की वापसी, चुनाव का प्रचार, मतदान तथा परिणाम घोषित होना आदि सम्मिलित हैं। निर्वाचन आयोग द्वारा उपरोक्त चुनाव के लिए निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं। निर्वाचन अधिकारियों के माध्यम से निर्वाचन प्रक्रिया संपन्न की जाती है। निर्वाचन की तिथियां घोषित होने के बाद राजनीतिक दलों का कार्य प्रारंभ हो जाता है। राजनीतिक दलों द्वारा मनोनीत प्रत्याशी तथा निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त रिटर्निंग अधिकारियों के समक्ष नामांकन पत्र भरते हैं। प्रत्याशियों द्वारा निर्धारित तिथि तक नाम वापस लिया जा सकता है। इसके पश्चात जो प्रत्याशी शेष रह जाते हैं चुनाव प्रचार शुरू कर देते हैं। राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रत्याशी अपने दल का चिन्ह प्रयोग करते हैं। भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिन्ह कमल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ,बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी है। निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव अधिकारी द्वारा आवंटित चुनाव चिन्ह का प्रयोग करना होता है।चुनाव प्रचार विभिन्न माध्यमों से किया जाता है। यह प्रचार सभा व भाषणों, जुलूस, झंडा, पोस्टर, बैनर ओं तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा किया जाता है। प्रत्याशी अपने निर्वाचन क्षेत्र में सभाएं व संपर्क करते हैं। सभी राजनीतिक दल अपना चुनाव घोषणा पत्र प्रकाशित कर सत्ता में आने पर कराए जाने वाले कार्यो का वादा करते हैं। सभी दल आंतरिक व विदेश नीति, आर्थिक नीति तथा रक्षा नीति आदि महत्वपूर्ण समस्याओं पर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं। सत्ताधारी दल अपनी उपलब्धियां जनता के समक्ष रखता है तथा प्रतिपक्ष दल वर्तमान सरकार की कमियों को सामने रखते हैं। चुनाव प्रचार मतदान के निर्धारित समय से 48 घंटे पूर्व समाप्त हो जाता है। मतदान के पश्चात चुनाव परिणाम घोषित कर दिए जाते हैं।
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में दलीय व्यवस्था दो तरह विकसित हुई है। एक राष्ट्रीय दल और दूसरा क्षेत्रीय दल। राष्ट्रीय दल वे हैं जिनका प्रभाव पूरे देश में होता है किंतु उनका प्रभाव प्रत्येक राज्य में अलग-अलग होता है। चुनाव आयोग की ओर से निर्धारित व्यवस्था अनुसार पार्टी कम से कम चार राज्यों में पिछले आम चुनाव में कुल वैध मतों का कम से कम 4% मत प्राप्त कर लेता है, उसे राष्ट्रीय दल कहलाने की मान्यता मिल जाती है। आज भारत में भारतीय जनता पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी, बहुजन समाज पार्टी, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय दलों के रूप में काम कर रही हैं। राष्ट्रीय दलों के अतिरिक्त कुछ क्षेत्रीय दलों का प्रभाव रहता है लेकिन यह अपने क्षेत्र में काफी प्रभावशाली होते हैं। क्षेत्रीय दलों में कुछ मुख्य दल हैं महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल, जम्मू एवं कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, असम में असम गण परिषद, आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम, उड़ीसा में बीजू जनता दल आदि।
राजनीतिक दलों की भूमिका
राजनीतिक दलों के अस्तित्व के बिना लोकतंत्र व्यवस्था चल नहीं सकती। राजनीतिक दल लोकतंत्र की जीवन डोर होते हैं। राजनीतिक दलों से अभिप्राय नागरिकों के उस संगठित समूह से है जो एक ही राजनीतिक सिद्धांतों को मानते हैं, एक राजनीतिक इकाई के रूप में काम करते हैं और सत्ता प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। राजनीतिक दल संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया के आधार हैं। इस कारण राजनीतिक दलों की भूमिका अहम हो जाती है। वस्तुतः वर्तमान में लोकतंत्र व्यवस्था राजनीतिक दलों के अभाव में कार्य नहीं कर सकती। लोकतंत्र व्यवस्था को चलाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा अनेक कार्य किए जाते हैं जैसे वह निर्वाचन में भाग लेते हैं, प्रत्याशियों का चयन करते हैं, चुनाव प्रचार करते हैं और निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार बनाते हैं। प्रतिपक्ष की भूमिका निभाते हैं जन समस्याओं को लेकर जनआंदोलन चलाते हैं। दल की विचारधारा का प्रचार एवं दलित संगठन को सुदृढ़ करने का कार्य भी करते हैं। इस प्रकार लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। भारतीय राजनीति में कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल प्रभावी हैं इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत में बहुदलीय व्यवस्था है। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अग्रणी भूमिका रही है। आजादी के बाद भी यह एक मुख्य दल बना रहा और लंबे समय तक केंद्र तथा राज्य में सत्तारूढ़ रहा। 1977 के बाद भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों का प्रचलन बढ़ा है। केंद्र के समान राज्यों में भी क्षेत्रीय दलों के स्वरूप में परिवर्तन आया है और पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, जम्मू एवं कश्मीर में भी गठबंधन सरकार बनी है।भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में दलीय व्यवस्था दो तरह विकसित हुई है। एक राष्ट्रीय दल और दूसरा क्षेत्रीय दल। राष्ट्रीय दल वे हैं जिनका प्रभाव पूरे देश में होता है किंतु उनका प्रभाव प्रत्येक राज्य में अलग-अलग होता है। चुनाव आयोग की ओर से निर्धारित व्यवस्था अनुसार पार्टी कम से कम चार राज्यों में पिछले आम चुनाव में कुल वैध मतों का कम से कम 4% मत प्राप्त कर लेता है, उसे राष्ट्रीय दल कहलाने की मान्यता मिल जाती है। आज भारत में भारतीय जनता पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी, बहुजन समाज पार्टी, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय दलों के रूप में काम कर रही हैं। राष्ट्रीय दलों के अतिरिक्त कुछ क्षेत्रीय दलों का प्रभाव रहता है लेकिन यह अपने क्षेत्र में काफी प्रभावशाली होते हैं। क्षेत्रीय दलों में कुछ मुख्य दल हैं महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल, जम्मू एवं कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, असम में असम गण परिषद, आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम, उड़ीसा में बीजू जनता दल आदि।
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