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Economy अर्थव्यवस्था

Economy  अर्थव्यवस्था : उत्पादन के साधनों का स्वामित्व के आधार पर

अर्थशास्त्र में व्यक्तियों एवं समाज के बीच लेनदेन का अध्ययन किया जाता है।

अर्थव्यवस्था का अर्थ 

जब हम लोगों के क्रियाकलापों को देखते हैं तो यह पाते हैं कि अलग-अलग लोग अलग-अलग कार्यों में लगे हुए हैं। किसान खेती कर रहा है, दुकानदार अपनी दुकान चलाता है, अध्यापक विद्यालय में पढ़ाता है, डॉक्टर अस्पताल में बीमार मरीजों का इलाज करता है। यह सभी लोग अपनी आजीविका कमाने के लिए कार्य करते हैं । जीविकोपार्जन के इन कार्यों को करने के लिए किसी संगठन, प्रणाली या व्यवस्था का होना आवश्यक है। यह प्रणाली या व्यवस्था ही अर्थव्यवस्था कहलाती है। जिसके द्वारा लोग अपना जीविकोपार्जन करते हैं। हर मनुष्य की अनेक आवश्यकताएं होती हैं। उन्हें पूर्ण करने के लिए अनेक वस्तुओं तथा सेवाओं की आवश्यकता होती है। इन वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन के लिए उत्पादक को उत्पादन के विभिन्न साधनों की आवश्यकता पड़ती है।
उत्पादन के साधनों को मुख्य रूप से पांच भागों में बांटा गया है भूमि, श्रम, पूंजी, प्रबंध एवं साहस। उत्पादन के इन विभिन्न साधनों के सम्मिलित प्रयास से ही वस्तुओं का उत्पादन संभव हो पाता है। जैसे कि कपड़े का उत्पादन कपड़ा मिल द्वारा किया जाता है। कपड़े के उत्पादन के लिए कपड़ा मिल किसान से कपास, मशीन उद्योग से मशीन तथा ऊर्जा संयंत्र से बिजली प्राप्त करता है। इस सारी प्रक्रिया में माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए रेल, बस, ट्रक आदि परिवहन के साधनों की आवश्यकता पड़ती है। इनमें से कोई भी उत्पादक सहयोग नहीं करें तो कपड़े का उत्पादन संभव नहीं होगा। इस प्रकार विभिन्न उत्पादकों के बीच आपसी सहयोग व तालमेल एक व्यवस्था को जन्म देता है और इसे ही अर्थव्यवस्था कहते हैं। उत्पादकों के बीच आपसी सहयोग की प्रणाली को अर्थव्यवस्था कहा जाता है। परंतु यह अर्थव्यवस्था की अधूरी परिभाषा है इससे अर्थव्यवस्था का पूरा चित्र हमारे सामने नहीं आता। कोई भी व्यक्ति अपनी आवश्यकता की संपूर्ण वस्तुएं और सेवाएं अकेला उत्पादित नहीं कर सकता।
अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं को देखकर बदले में दूसरों के द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं को प्राप्त करना पड़ता है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक स्थान विनिमय की प्रणाली द्वारा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। तथा एक दूसरे पर निर्भर है। यही कारण है कि अर्थव्यवस्था को पारस्परिक विनिमय की प्रणाली भी कहा जाता है। अर्थव्यवस्था को तीन प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-

1. अर्थव्यवस्था लोगों के जीविकोपार्जन की प्रणाली है।
2. अर्थव्यवस्था उत्पादकों के परस्पर सहयोग की प्रणाली है।
3. अर्थव्यवस्था पारस्परिक विनिमय प्रणाली है।  
जब गहराई से अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि अर्थव्यवस्था की तीन अलग-अलग परिभाषाएं नहीं होकर एक ही बात को कहने की अलग अलग तरीके हैं और यह तीनों एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। अर्थव्यवस्था उसको कहते हैं जिसमें और जिसके द्वारा लोग अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उत्पादन एवं विनिमय की क्रियाओं के माध्यम से आजीविका का उपार्जन करते हैं।
 एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन, उपभोग, विनिमय, वितरण आदि की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती हैं। इन प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप विभिन्न आर्थिक संस्थाओं का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए उत्पादन के लिए हमें खेतों, कारखानों, खान, कार्यालयों की आवश्यकता होती है। विनिमय के लिए थोक तथा फुटकर व्यापारियों, वितरकों एजेंटों,सेल्समैन, बाजार, मंडी आदि की आवश्यकता होती है। परिवहन के लिए रेल, बस , ट्रक, ऊंट गाड़ी, बैलगाड़ी के अलावा सड़कों, रेलमार्गों की आवश्यकता होती है। निवेश के लिए बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं की आवश्यकता होती है।
अर्थशास्त्र में संस्था शब्द का व्यापक अर्थ में प्रयोग होता है। इसमें उन सभी नियमों, परंपराओं एवं प्रबंधन की विधियों को शामिल करते हैं। जो आर्थिक क्रियाओं को चलाने में मदद करते हैं। इन क्रियाओं के परिणाम स्वरूप कुछ आर्थिक व सामाजिक संबंध भी उत्पन्न होते हैं। जैसे श्रमिक व पूंजीपति में, स्वामी व काश्तकार में, क्रेता विक्रेता में, उत्पादक उपभोक्ता में आदि। इन सभी संस्थाओं व संबंधों को मिलाकर किसी भी देश का जो आर्थिक ढांचा बनता है। यह आर्थिक ढांचा ही अर्थव्यवस्था कहलाता है। अतः जब हम भारतीय अर्थव्यवस्था के अध्ययन की बात करते हैं तो इसका अर्थ संपूर्ण देश के निवासियों के आर्थिक क्रियाकलापों के अध्ययन से होता है।
अर्थव्यवस्था के प्रकार 
विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं को हम दो आधारों पर वर्गीकृत कर सकते हैं।

1. उत्पादन के साधनों का स्वामित्व के आधार पर
2. विकास का स्तर के आधार पर 

1. उत्पादन के साधनों के स्वामित्व के आधार पर

 उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व में अंतर के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं को मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

· पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
· समाजवादी अर्थव्यवस्था 
· मिश्रित अर्थव्यवस्था 


· पूंजीवादी अर्थव्यवस्था 

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से तात्पर्य एक ऐसी आर्थिक प्रणाली से है जिसमें उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है। तथा आर्थिक क्रियाएं निजी हित एवं लाभ प्रेरणा द्वारा संचालित होती है। इसे स्वतंत्र अर्थव्यवस्था, मुक्त अर्थव्यवस्था एवं बाजार अर्थव्यवस्था जैसे नामों से भी पुकारा जाता है। इस प्रणाली का उदय 1760 से 1820 के दौरान औद्योगिक क्रांति के समय हुआ। वैसे तो आज संसार में किसी भी देश में पूंजीवाद विशुद्ध रूप में नहीं पाया जाता फिर भी संयुक्त राज्य अमेरिका जापान जर्मनी इंग्लैंड कनाडा इटली फ्रांस आदि देशों की अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कह सकते हैं।
 पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं

1. संपत्ति पर निजी स्वामित्व 

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में भूमि खानो कारखानों आदि उत्पादन के साधनों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व होता है। व्यक्तियों को संपत्ति रखने उसे  बढ़ाने तथा अपनी इच्छा अनुसार उसका प्रयोग करने का अधिकार होता है। व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी निजी संपत्ति को अपने उत्तराधिकारियों को देने का अधिकार भी रखता है।

2. आर्थिक स्वतंत्रता 

इस अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा अनुसार कार्य करने, उपभोग करने, समझौता करने उत्पादन की वस्तु, स्थान तथा तकनीक का चुनाव करने की स्वतंत्रता होती है। सरकार की ओर से कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता है। इसलिए इस अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र  उधम वाली अर्थव्यवस्था कहा जाता है ।

3. उपभोक्ता की संप्रभुता 

इस अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उपभोक्ता की रुचि व इच्छा के अनुसार ही उत्पादक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता बाजार का राजा होता है ।

4. पूर्ण प्रतियोगिता 

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में हम प्रत्येक स्तर पर प्रतियोगिता पाते हैं। चाहे वह वस्तु बाजार हो या साधन बाजार। हम इन बाजारों में देखते हैं कि विक्रेताओं में अपनी-अपनी वस्तुओं को बेचने क्रेताओं में विभिन्न वस्तुओं को खरीदने तथा श्रमिकों में रोजगार प्राप्त करने की प्रतियोगिता चलती रहती है। सभी क्रेता विक्रेता मिलकर कीमत को प्रभावित कर सकते हैं। परंतु एक क्रेता या विक्रेता मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकता। इसलिए यह कहा जाता है कि प्रतियोगिता के कारण कुशलता में वृद्धि होती है। 

5. कीमत यंत्र की भूमिका 

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन कीमत प्रणाली के आधार पर होता है। दूसरे शब्दों में क्या और कितना उत्पादन करना है, उत्पादन कैसे करना है, उत्पादन का वितरण कैसे किया जाएगा आदि सभी महत्वपूर्ण निर्णय कीमत प्रणाली के माध्यम से ही लिए जाते हैं। 

6. निजी हित एवं लाभ 

प्रेरणा इस प्रणाली में सभी आर्थिक क्रियाओं का आधार मुख्य रूप से निजी हित एवं निजी लाभ होता है। प्रत्येक व्यक्ति किसी भी काम के बारे में निर्णय लेते समय मुख्य रूप से यही विचार करता है कि उसे इस काम से क्या और कितना लाभ मिलेगा। इसलिए लाभ भावना को पूंजीवादी की सभी संस्थाओं का हृदय कहा जाता है।

7. वर्ग संघर्ष 

पूंजीवाद में समाज तो वर्गों में बैठ जाता है। पूंजीपतियों या साधन संपन्न वर्ग और दूसरा साधन विहीन वर्ग। इन दोनों वर्गों में अपने-अपने हितों के लिए संघर्ष होता रहता है। पूंजीपति अपना लाभ उठाने के लिए श्रमिकों को उनका पारिश्रमिक कम देते हैं। जबकि श्रमिक शोषण से बचने के लिए प्र्यत्नशील रहते हैं। इसका परिणाम हड़ताल तालाबंदी के रूप में प्रकट होता है। 

· समाजवादी अर्थव्यवस्था

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की बुराइयों से मुक्ति पाने के लिए एक नवीन अर्थव्यवस्था का जन्म हुआ जिसे समाजवाद अर्थव्यवस्था कहा गया। समाजवादी अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधनों पर संपूर्ण स्वामित्व पाया जाता है। और आर्थिक निर्णय किसी एक केंद्रीय सत्ता द्वारा लिए जाते हैं। साधनों का उपयोग किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के हित में नहीं किया जाकर सामूहिक हित में किया जाता है। समाजवादी विचारधारा के विकास का श्रेय कार्ल मार्क्स को है। मार्क्स की कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो नामक पुस्तक ने समाजवादी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई मार्क्स  के विचारों से ही प्रभावित होकर 1917 में रूस में क्रांति हुई और समाजवादी अर्थव्यवस्था की नींव रखी गई उसके बाद लो वाक्य एंग्री उत्तरी कोरिया जर्मन जनवादी गणराज्य वियतनाम आदि देशों ने समाजवाद को अपनाया। 
समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं 

1. साधनों पर समाज का स्वामित्व 

इस प्रणाली में उत्पादन के साधनों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व न होकर सरकार या समाज का स्वामित्व होता है। 

2. वर्गों की समाप्ति व आर्थिक समानता 

समाजवादी अर्थव्यवस्था में पूंजीपति एवं श्रमिक के रूप में दो अलग-अलग वर्ग में होकर केवल एक ही वर्ग रह जाता है। वह है श्रमिक वर्ग या सर्वहारा वर्ग इसमें समान कार्य के लिए समान मजदूरी दी जाती है। 

3. आर्थिक नियोजन  समाजवादी 

अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक निर्णय केंद्रीय सत्ता द्वारा लिए जाते हैं। यही संपूर्ण देश की योजना बनाती है। केंद्रीय योजना अधिकारी ही यह तय करते हैं कि क्या उत्पादन करना है, उत्पादन कैसे करना है और उत्पादन किसके लिए किया जाना है। कीमत प्रणाली तथा प्रतियोगिता की भूमिका इस अर्थव्यवस्था में समाप्त हो जाती है। 

4. अधिकतम सामाजिक लाभ 

इस अर्थव्यवस्था में विभिन्न आर्थिक क्रियाओं के बारे में निर्णय निजी लाभ के बजाय अधिकतम सामाजिक लाभ के उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही लिए जाते हैं। 

5. उपभोक्ता की संप्रभुता का अंत 

समाजवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता को अपनी इच्छा अनुसार उपभोग करने की स्वतंत्रता नहीं होती । राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मात्रा में उन्हीं वस्तुओं का उपयोग किया जा सकता है। जिन वस्तुओं का राज्य के निर्देशानुसार उत्पादन किया जाता है। 
 समाजवादी अर्थव्यवस्था में अनेक गुण पाए जाते हैं। इसमें साधनों का उपयोग निजी लाभ के लिए नए होकर समस्त समाज के हित के लिए किया जाता है। वर्ग संघर्ष का अंत हो जाता है साधनों का अधिकतम उपयोग होता है। व्यापार चक्कर समाप्त हो जाते हैं, बेरोजगारी की समाप्ति व शोषण का अंत हो जाता है, आर्थिक समानता स्थापित होती है। परंतु इसमें ऐसी कमियाँ रही जिस कारण से आज यह व्यवस्था विश्व में समाप्ति की ओर है। इसके दोषो में नौकरशाही और लालफीताशाही का बोलबाला है। कुशलता उत्पादन में कमी आर्थिक परिणाम का अभाव पार्टी की तानाशाही स्वतंत्रता की कमी आदि प्रमुख हैं। 

· मिश्रित अर्थव्यवस्था 

 यह प्रणाली पूंजीवाद और समाजवाद के बीच का रास्ता है। इसमें पूंजीवादी व समाजवादी अर्थव्यवस्थाओं के तत्वों का देश की आवश्यकता अनुसार सम्मिश्रण रहता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों का ही सह अस्तित्व होता है। दोनों के कार्य करने का क्षेत्र निर्धारित किया जाता है तथा दोनों अपने-अपने क्षेत्र में मिलकर इस प्रकार कार्य करते हैं जिससे देश के सभी वर्गों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है। तथा आर्थिक विकास तीव्र गति से होता है। भारत में स्वतंत्रता के बाद इसी प्रणाली को अपनाया है। 
मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएं 

1. सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र का सह अस्तित्व 

भारी व आधारभूत उद्योगों का विकास सार्वजनिक क्षेत्र के अधीन तथा उपभोग उद्योग तथा कुटीर उद्योग एवं कृषि कार्य निजी क्षेत्र के अधीन होते हैं। इन दोनों क्षेत्रों के अलावा संयुक्त क्षेत्र तथा सहकारी क्षेत्र भी कार्य करते हैं।  

2. सामाजिक कल्याण 

इस प्रणाली में निजी क्षेत्र कार्य करता है। परंतु उसे सामाजिक कल्याण के मार्ग में बाधक नहीं बनने दिया जाता है;। सामाजिक कल्याण को अधिक महत्व दिया जाता है। 

3. नियंत्रित कीमत प्रणाली 

इस प्रणाली में कीमत यंत्र को न तो पूर्णतया खुला छोड़ा जाता है और न ही उसे पूर्णतया समाप्त किया जाता है। सरकार सामाजिक हित में कीमत प्रणाली पर नियंत्रण रखती है। ताकि असामानता न बढ़े तथा सामाजिक कल्याण अधिकतम हो सके। 

4. व्यक्तिगत स्वतंत्रता 

मिश्रित अर्थव्यवस्था में कार्य करने व उपभोग करने की स्वतंत्रता होती है परंतु पूंजीवाद की तुलना में यह स्वतंत्रता सीमित होती है। इस व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतंत्रता सामाजिक हित की दृष्टि से सीमित कर दी जाती है।  
मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूंजीवादी तथा समाजवादी दोनों ही व्यवस्थाओं के अनेक गुणों का समावेश होता है। इसमें लोगों को व्यवसाय व उपभोग की पर्याप्त स्वतंत्रता होती है। साधनों का कुशल उपभोग होने से तीव्र आर्थिक विकास होता है। आर्थिक असामानता में कमी होती है।  व्यापार चक्र पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है, परंतु इस प्रणाली में कई कमियां भी हैं जैसे इस अर्थव्यवस्था में निजी व सार्वजनिक क्षेत्र एक दूसरे के पूरक न होकर एक दूसरे के विरोधी बन जाते हैं। राष्ट्रीयकरण के खतरे की संभावना से निजी क्षेत्र पर पूर्ण कार्य कुशलता से कार्य नहीं करता।   आर्थिक अस्थिरता तथा समन्वय का अभाव होने से देश का तीव्र गति से आर्थिक विकास नहीं हो पाता है।

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