मूल कर्तव्य एंव नीति निदेशक तत्व Fundamental Duties and Directive Principles
मूल कर्तव्य भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए संवैधानिक दायित्व है। वस्तुतः यह कर्तव्य देश में शांति एवं उन्नति को सुनिश्चित करने के लिए हैं। मूल कर्तव्य संविधान में 42वें संशोधन के द्वारा
1976 में सम्मिलित किए गए। इन कर्तव्यों का आयोजन नागरिकों में देशभक्ति की भावना में वृद्धि करना, राष्ट्र को मजबूत बनाना, देश की संप्रभुता तथा अखंडता की रक्षा करने तथा समरसता की भावना विकसित करना है।
मूल कर्तव्य
इसके अनुसार प्रत्येक का यह कर्तव्य है कि-
1. संविधान का पालन करें तथा उसके आदर्शों संस्थाओं राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का सम्मान करें।
2. स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें तथा उनका पालन करें।
3. भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता की रक्षा करें।
4. देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा, प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो।
6. हमारी मिली-जुली संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परीक्षण करें।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, और वन्य जीव हैं रक्षा करें उसका संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहे।
10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न व उपलब्धि की नई-नई ऊंचाइयों को छू सके।
11. 6 से 14 वर्ष के बच्चों को उनके अभिभावक अथवा संरक्षक जैसी भी हो शिक्षा का अवसर प्रदान करें।
नीति निदेशक तत्व
नीति निर्देशक तत्वों के माध्यम से संविधान द्वारा केंद्र व राज्य की सरकारों को निर्देश दिए गए हैं जिनके आधार पर यह सरकारें ऐसी नीतियां बनाएंगी जो देश में न्याय संगत तथा समता मूलक समाज की स्थापना करने में सहायक होंगी। लोकतंत्र का उद्देश्य ऐसी सामाजिक व आर्थिक दशाओं का सर्जन करना है जिन में रहकर नागरिक अच्छा जीवन जी सकें। इन्हीं भावनाओं के आधार पर नीति निर्देशक तत्वों का संविधान में समावेश किया गया है। नीति निदेशक तत्व को निम्न श्रेणियों में रखा जा सकता है-
1. सामाजिक व आर्थिक अधिकारों से संबंधित नीति निदेशक तत्व-
इस नीति निदेशक तत्वों की सूची में काम पाने का अधिकार, 14 वर्ष की आयु के बालक को निशुल्क, अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, समान कार्य करने के लिए समान वेतन तथा जीविका के पर्याप्त साधन पाने के अधिकार शामिल हैं। स्त्रियों की प्रसूति काल में राज्य द्वारा सहायता तथा श्रमिक व कृषक वर्ग को समय-समय पर संरक्षण देने हेतु सरकार को निर्देशित किया गया है। राज्य सरकार द्वारा पशु पालन व ग्रामीण परिवेश के जीवन स्तर में सुधार का प्रयास किया जाता रहेगा। किसानों को खेती की वैज्ञानिक विधि की जानकारी दी जाएगी। राज्य द्वारा पुरातात्विक महत्व की इमारतों स्मारकों आदि रक्षा की जाएगी। पिछड़ी जातियों में विशेषकर शिक्षा का विस्तार किया जाएगा। राज्य सुनिश्चित करेगा कि कारखानों में निर्णय लेने में वहां के श्रमिकों की भागीदारी हो, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
2. विश्व शांति को बढ़ावा देने वाले नीति निदेशक तत्व-
देश राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देगा। देश राष्ट्रों के बीच न्याय और सम्मान पूर्वक संबंधों को बनाए रखने का प्रयास करेगा। देश द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानूनों तथा संधियों का आदर किया जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय विवादों को निपटाने में पूरा प्रयास किया जाएगा। नीति निदेशक तत्व राज्य को लोक कल्याणकारी जनता के प्रति जवाबदेह बनाते हैं इनके द्वारा सरकार के द्वारा जनता के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए विभिन्न आर्थिक व सामाजिक सुझाव दिए गए हैं। हर राज्य अपने अपने संसाधनों के आधार पर इन्हें पूर्ण करने का प्रयास करता है। केवल मूल अधिकारों से ही नहीं बल्कि उनके साथ साथ नीति निर्देशक तत्वों का सामंजस्य स्थापित करके सरकार ऐसे समाज का सृजन कर सकती है जिसमें न्याय तथा कल्याण का वातावरण सुनिश्चित हो सके। परंतु इनकी पालना के लिए मौलिक अधिकारों की भांति न्यायालय द्वारा बाध्य नहीं किया जा सकता।
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